ग्वालियर घराने के ये दिग्गज असल में थे लखनवी
सुबह-ऐ-बनारस, शाम-ऐ-लखनऊ ये दो पंक्तियाँ लखनऊ और बनारस को बयान करती हैं हांलाकि हम यहाँ बनारस की तो नहीं परन्तु लखनऊ की बात ज़रूर कर रहे हैं. लखनऊ एक ऐसा शहर है जिसे नाज़ों से बनाया गया था और यहाँ पर हर्षोल्लास का मौसम मानो सदैव ही रहता है, तभी तो ‘शाम-ऐ-लखनऊ’ की पंक्ति मशहूर है. लखनऊ संगीत और नृत्य दोनों के लिए सम्पूर्ण भारत में जाना जाता था और यह कारण है कि वर्तमान में भी लखनऊ घराने के संगीतज्ञ संगीत के साथ ही साथ नृत्य की परंपरा को भी जीवित किये हुये हैं. ख़याल, ध्रुपद, ठुमरी आदि संगीत की ऐसी विधाएं हैं जो लखनऊ घराने की खासियत रही हैं. नृत्य की परंपरा अर्थात ठुमरी, बनारस और लखनऊ में ज़रूर देखने को मिलती है जो कि यहाँ के घरानों की खासियत है. संगीत के साथ-साथ नृत्य की विधा में कत्थक ने लखनऊ में एक महत्वपूर्ण स्थान बना कर रखा है.
आइये अब जानें कि आखिर लखनऊ घराना का इतिहास और इसका सम्बन्ध ग्वालियर घराने से क्या है?
‘घराना’ शब्द अवधी भाषा का शब्द है जिसका मूल मतलब होता है घर. अब संगीत घरानों का मतलब हुआ संगीतज्ञों और संगीत दोनों का घर. घराना परंपरा प्राचीन भारतीय संगीत शैली से मिली हुयी है जिसे कि गुरु- शिष्य परंपरा के नाम से जाना जाता है. तमाम घरानों के नाम स्थानों के या भौगोलिक दशा पर आश्रित हैं जो कि घरानों के अवतरण को उस स्थान से जोड़ देते हैं जहाँ से उसका प्रचार प्रसार हुआ. ग्वालियर घराना अपने संगीत के लिए विख्यात था. यह ध्रुपद गायन शैली के लिए जाना जाता था. जिसे संगीतप्रिय राजा मान सिंह तोमर ने एक नयी ऊँचाई प्रदान की थी. ऐसा जाना जाता है कि अकबर संगीत को लेकर बड़ा ही संजीदा था और वह दिल्ली और आगरा तक विभिन्न संगीतज्ञों को पनाह दिए हुए था. उसके दरबार में उपस्थित नवरत्नों की बात की जाए तो तानसेन, आगरा घराने के स्थापनकर्ता सुजान सिंह आदि अकबर के दरबार में निवास करते थे.
घराने की बात की जाए तो यह सिंधियाओं के दौर में स्थापित हुई
अकबर के जाने के और औरंगज़ेब के आने के बाद मानो पूरे युग का ही परिवर्तन हुआ और यहीं से संगीत के कई घरानों की कहानी शुरू हुई. हुआ यूँ कि औरंगज़ेब को गायकी में कोई रूचि नहीं थी और यह सुनकर संगीतज्ञों ने धरना दिया, यह बात औरंगजेब को रास नहीं आई और उसने यह आदेश दे दिया कि संगीत को ऐसे दफ़न करो कि यह पुनः न सामने आ पाए. यह सुनकर उसके दरबार के सभी संगीतज्ञ दिल्ली को छोड़ भागने लगे और वे विभिन्न स्थान पर अपना निवास बसाने लगे. कालान्तर में लखनऊ संगीत का एक महान केंद्र बना और इसको शह देने का सबसे बड़ा कार्य किया नवाब वाजिद अली शाह ने. जैसा कि माना जाता है कि हांलाकि ग्वालियर में संगीत तो राजा मान सिंह तोमर के दौर में आ गया था, ग्वालियर ध्रुपद का एक केंद्र बन चुका था परन्तु यदि घराने की बात की जाए तो यह सिंधियाओं के दौर में स्थापित हुयी थी. ग्वालियर घराने के महत्वपूर्ण संगीतज्ञ हड्डू और हस्सू खान के पुरखे रसूल खान वास्तविकता में लखनऊ से थे. दौलत राम सिंधिया के शासन के दौरान नत्थन पीरबक्श जो कि हड्डू खान और हस्सू खान के दादा थे ,ग्वालियर की ओर विस्थापित हुए थे. ठुमरी विधा का जन्म और विस्तार लखनऊ को माना जाता है. इस प्रकार से हम देख सकते हैं कि संगीत की विभिन्न विधाओं और घरानों का निर्माण किस प्रकार से हुआ और इनमें कितने स्थानों के संगीतज्ञों ने अपना योगदान दिया.