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कफ़न ओढ़े पड़े हैं लाशों के ढेर, अब तो बता दे तेरी मंशा क्या थी….

कफ़न ओढ़े पड़े हैं लाशों के ढेर, अब तो बता दे तेरी मंशा क्या थी…. क्या अब पूरी होगी भाजपा सरकार के शासन की कहानी ??

सत्ता की भूख बड़ी प्यारी होती है, जनता मरती है मर जाये। घर उजड़ते है तो उजड़ जाये, क्या फर्क पड़ता है....

सही कहा है किसी ने सत्ता का लालच जिसे लग जाता है उसे चिड़िया की आँख दिखती है, भले उसको भेदने के लिये वो कोई भी गलत रास्ता ले उसे उसका फर्क नहीं पड़ता है. आज भारत देश लाखों की तादाद में लोग मर रहे हैं, ऑक्सीजन के लिये तड़प रहें हैं और बस एक उम्मीद में बैठे हैं की शायद उनका नेता उनके लिये कुछ करेगा जिसे उन्होंने भरी गर्मी और कंपकपाती सर्दी में घंटों लाइन में लग कर वोट दिया था की उनका भविष्य अब अच्छा होगा, देश का विकास होगा और नतीजों के रूप में क्या मिला सिर्फ कफ़न. कोरोना वायरस की दूसरी लहर की खतरनाक रफ्तार थमने का नाम नहीं ले रही है. कोरोना मरीजों और कोविड से होने वाली मौतों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी से देश भर में दहशत का माहौल बन गया है. राज्य सरकार और केंद्र सरकार वादों और उम्मीद दिलाने के अलावा कुछ नहीं कर रही. केंद्र सरकार अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिये जनता की जान जोख़िम में डालने से बिल्कुल हिचकिचाती नहीं है, लेकिन भारत की जनता अब सब समझ और जान गयी है इसलिये जब जनता को ही आत्मनिर्भर बनना ही है तो देश के प्रधानमंत्री और देश के नेताओं का फिर क्या काम. कोरोना वायरस के संक्रमण ने जनता को आत्मनिर्भर तो बना दिया है लेकिन जबाव देना भी सीखा दिया है. ये कहना गलत नहीं होगा की जल्द ही भाजपा सरकार का सूरज अस्त होने वाला है-

बंगाल में परिवर्तन होते होते हो गया खेला

भाजपा ने इस बार कमर कस ली थी की दीदी को हटा के रहेंगे इसके लिये क्या कुछ नहीं किया भाजपा सरकार ने रैलियों पर रैली, राज्यों के मुख्यमंत्री बंगाल सम्बोधित करने गये, अमित शाह गये, लाखों की तादाद में लोगों को इकठ्ठा किया बल्कि ये जानते हुये की कोरोना संक्रमण अपना भीषण रूप लेता जा रहा है. लेकिन आँख मूंदते हुये उन्हें तो बस परिवर्तन करना था लेकिन जनता इतनी बेवकूफ नहीं है की उसे कुछ दिखाई न दे फिर क्या हो गया खेला. देश मर रहा अस्पताल में लाखों जाने जा रही हैं इन सबको दरकिनार और उनके बारे में ना सोचते हुये देश के प्रधानमंत्री ने ऐसी हरकत की जिसे देश कभी माफ़ नहीं करेगा. प्रशांत किशोर ने दिसंबर में कहा था- बंगाल में भाजपा डबल डिजिट पार नहीं कर पाएगी, वही हुआ और बंगाल चुनाव के नतीजों के बाद बाद भाजपा औंधे मुँह गिर पड़ी.
ये कहना अब बिलकुल गलत नहीं होगा की अब शुरुआत हुई है.

यूपी के पंचायत चुनावों के नतीजों ने भाजपा को किया दरकिनार

भले ही कुछेक महीने पहले योगी आदित्यनाथ सरकार ने अपनी सरकार की चार सालों की उपलब्धियों का जश्न मनाया था. क़सीदे गढ़े गए थे. सरकार चर्चा में रही है. कभी विकास दुबे एनकाउंटर को लेकर तो कभी पुलिस की लालफीताशाही को लेकर. लाखों करोड़ों के इनवेस्टमेंट लाने का सरकार ने दावा किया था लेकिन पंचायत चुनावों के नतीजों ने साफ कर दिया की अब उत्तर प्रदेश की जनता भाजपा सरकार को नहीं चाहती है. भाजपा सरकार सिर्फ गोलमोल बाते करना जानती है जनता के लिये काम नहीं.


“ब्रांड योगी तो फ़ेल हुआ ही है. इसका सबसे पहला कारण मानिए कि मुख्यमंत्री किसी की बात नहीं सुनते हैं. पंचायत चुनाव के पहले उनकी ही पार्टी के कई सारे विधायकों और नेताओं ने उनसे कहा कि चुनाव टाल दीजिए. कोरोना को लेकर स्थिति ये गवाही नहीं देती है. लेकिन उन्होंने किसी की भी बात मानने से इंकार कर दिया. अब आप अपनी ही पार्टी की बात नहीं मानेंगे, तो आपको लोग कैसे लेंगे?”
स्पष्ट तौर पर ये कहा जा सकता है जनता ने ठान लिया जो जन सेवा करेगा वो ही हमारा नेता होगा.

आत्मनिर्भर ही बनना है, तो प्रधानमंत्री जी आपका क्या काम?

2020 में जनता ने आंख मूंद कर भाजपा सरकार की बात सुनी और करी जी हाँ थाली बजाने को कहा तो थाली बजाई, दिया जलाने को कहा तो दिया जलाया, मजदूरों का पलायन और उनकी मौतों को भी अनदेखा किया की शायद उनकी ही गलती होगी क्यों इतनी जल्दी निकले सरकार जरूर उनके लिये कुछ करती. हमारी भाजपा सरकार इतनी कठोर थोड़ी हो सकती है की मजदूर भाइयों का दर्द न दिखे. हम बस सोचते ही रह गए और सरकार ठहाके लगाके हमारी मूर्खता और सोच पर हंसती रही और हमे ज्ञान देती रही की आत्मनिर्भर बनो भैया क्योंकि हम तो आपके लिये कुछ नहीं करने वाले और ना ही हमारे बस की है.


आज जनता त्राहि-त्राहि कर रही है हर जगह लगातार बढ़ते कोरोना मरीजों की वजह से देश भर के अस्पतालों में बेड, वेंटिलेटर, रेमडेसिविर और ऑक्सीजन की किल्लत जारी है. सैकड़ों लोग बिना इलाज के ही दम तोड़ रहे हैं. शवों के अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाटों पर कई कई घंटों का इंतजार करना पड़ रहा है. 


सरकार से उम्मीद छोड़ आज हर इंसान दूसरे इंसान की मदद कर रहा है. हज़ारों किलोमीटर चल दोस्त के लिये ऑक्सीजन सिलिंडर ला रहा तो दूसरी ओर ऑटो, मोटर साईकिल में ऑक्सीजन सिलिंडर बांधे मदद कर रहा है. अगर सरकार ने मूर्तियों पर करोड़ों रूपया फूंकने के बजाय ऑक्सीजन प्लांट्स के बारे में सोचा होता तो देश की तस्वीर कुछ और होती.

सरकार और कालाबाजारी

देश में कोरोना के मामले काफी तेजी से बढ़े हैं. यहां पर मरीजों को ना समय रहते अस्पताल में बेड मिल पा रहा है और ना ही ऑक्सीजन की पुख्ता सप्लाई होती दिख रही है. बड़े स्तर पर जारी कालाबाजारी ने स्थिति को और ज्यादा चिंताजनक बना दिया है. जगह-जगह से रेमडेसिविर के इंजेक्शन बरामद किए जा रहे हैं. तो वहीँ अब कालाबाजारी करते हुए डॉक्टर और लैब असिस्टेंट गिरफ्तार किये जा रहे हैं. इन सब से सरकार पर एक प्रश्न उठता है की ऐसी स्थिति आयी ही क्यों? सरकार 1 साल से क्या कर रही थी जो जनता के लिये पुख्ता इंतज़ाम नहीं कर पायी. आज एक एम्बुलेंस वाला 12 किलोमीटर के लिये 40 हज़ार चार्ज कर रहा है क्योंकि वो अपने प्रियजनों को बचाना चाहता है मरने नहीं देना चाहता है.
शर्म करना चाहिये ऐसे नेताओं को जो ऐसा शासन करना चाहते हैं जिसमें खुद का स्वार्थ हो जन सेवा नहीं

ऐसे में मुझे कविता की वो लाइन याद आती है की-

आँखे मूंदे चले जा रहा देश, पीछे जिनके
इरादे इनके बड़े ख़राब होते है
अमन छीन देश को देते हैं जंग
दहशतगर्दी के आसमां के महताब होते हैं