मध्यप्रदेश में कोई जीना क्यों नहीं चाहता?
मध्यप्रदेश में जब से मामा पनौती की सरकार आई है, जनता का इस दुनिया में जीने से मानो विश्वास ही उठ गया हो। कोरोना महामारी के बीच जिस तरह से सत्ता बदलने का खेल हुआ तभी लग गया था कि मध्यप्रदेश को और यहां की जनता को अब शायद ही कोई बचा पाएगा। प्रदेश में रोजगार, कामकाज के हालात बद से बदतर हैं। किसानों के लिए शिवराज सरकार मौत का दूसरा नाम है। युवाओं की जिंदगी में यहां इस सरकार में अंधकार के अलावा कुछ नहीं बचा है। अब व्यापारी काम धंधे बंद होने से परिवार को भूखा मरता हुआ नहीं देख पा रहा इसलिए खुद मौत को गले लगा रहा है।
खंडवा में कोरोना हॉट स्पॉट बने सिंधी कॉलोनी में रविवार-सोमवार की रात किराना व्यवसायी बालचंद (45) ने फांसी लगाकर जान दे दी। लॉकडाउन और कंटेनमेंट के कारण बालचंद की आर्थिक स्थिति खराब हो गई थी। पिछले ढाई महीने से कंटेनमेंट और लॉक डाउन जोन रहने से वह परेशान रहता था। क्षेत्रवासियों से वह अकसर एक ही सवाल करता था- ये कंटेनमेंट कब खुलेगा। अब और बर्दाश्त नहीं हो रहा है। मृतक के भाई सुभाष झामनानी के मुताबिक रविवार रात 12.30 बजे तक बालचंद अपनी बेटी कीर्ति (13), दिव्या (10) व पत्नी हीना के साथ टीवी देखते हुए सो गया। रात 2 बजे हीना की नींद खुली तो उन्होंने कहा कि इतनी रात तक जाग रहे हो, सो जाओ। इतना कहकर वह सो गई। इसके बाद रात 3 बजे बालचंद की पत्नी बाथरूम जाने के लिए जागी तो देखा कि बाथरूम के दरवाजे पर रस्सी के फंदे पर बालचंद लटके हुए है। भाभी ने हम सब भाइयों को फोन लगाया। हम पहुंचे तब तक बालचंद की मौत हो चुकी थी।
मृतक के भाई सुभाष ने बताया कि मेरे भाई ने लॉकडाउन के कारण आर्थिक तंगी से परेशान होकर जान दी है। प्रशासन को हमसे पूछना चाहिए। जो लोग हमारे परिवार के बारे में जानते नहीं है उनके बयान दर्ज कर खानापूर्ति की गई।