बाबा और श्रद्धा सबूरी
विजयादशमी के दिन शिरडी के संत साईंबाबा का महाप्रयाण दिवस मनाया जाता है. बाबा ने हमें श्रद्धा और सबूरी (सब्र) के रूप में ऐसे दो दीप दिए हैं, जिन्हें यदि हम अपने जीवन में ले आएं, तो उजाला पैदा कर सकते है. श्रद्धा हमेशा व्यक्ति को सही रास्ते की ओर ले जाती है, वहीं संयम से वह उस रास्ते पर टिका रह पाता है.
जब हम अपने लक्ष्य से भटकने लगते हैं, तब संत ईश्वर के संदेशवाहक बनकर सही मार्ग दिखाते हैं. संतों की श्रृंखला में शिरडी के साईं बाबा का नाम विख्यात है. 15 अक्टूबर 1918 को विजयादशमी के पर्व पर साईंबाबा ने महाप्रयाण किया, किंतु उनका उपदेश श्रद्धा और सबूरी आज भी हमें जीवन जीने की कला सिखा रहा है.
श्रद्धा ईश्वर तक पहुंचने की सीढ़ी है. शास्त्रों में लिखा है कि भक्त को भगवान से मिलाने की क्षमता केवल श्रद्धा में ही है. ईश्वर आडंबर से नहीं, बल्कि सच्ची श्रद्धा से ही सुलभ होता है. श्रीमद्भागवद्गीता (4-39) में कहा गया है-
श्रद्धावांल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेंद्रिय:। ज्ञानं लब्धवा परां शांतिमचिरेणाधिगच्छति||
अर्थात श्रद्धावान मनुष्य जितेंद्रिय साधक बनकर तत्वज्ञान प्राप्त करता है और तत्काल ही भगवत्प्राप्ति के रूप में परम शांति पा लेता है.
श्रद्धा के बिना विवेकहीन व्यक्ति संशयग्रस्त होकर पथभ्रष्ट हो जाता है.
गीता के अनुसार –
अज्ञश्चाश्रद्धानश्च संशयात्मा विनश्यति। नायं लोकोस्ति न परो न सुखं संशयात्मन:||
अर्थात श्रद्धारहित विवेकहीन संशययुक्त मनुष्य परमार्थ से पथभ्रष्ट हो जाता है. ऐसे मनुष्य के लिए न यह लोक है, न परलोक है और न ही सुख है.