झन्नाटेदार गुज़रा 2020 का आधा साल
2020 जैसे-जैसे गुज़र रहा है, ये हमारी दादी नानी की कहानियों में अपनी जगह बना रहा है. हम अपनी आगे की जनरेशन को ये बता सकेंगे की 2020 में क्या क्या हुआ, और शायद हमारी तरह वो भी हर लाइन के बाद हम्म बोलकर कहानी के बीच अपनी हाज़री लगाएंगे.
हम आज के समय को किसी युद्ध से कम नहीं समझ रहें है जिसमे नए नए अस्त्र शस्त्र हम पर प्रहार कर रहें है और हम बखूबी उनका सामना कर रहे है. ये समय हमारे ऊपर बेताल बनके सवार है, इससे छुटकारा हमे दवाई बनने के बाद ही मिल सकता है लेकिन अभी सावधानी बरतते हुए हम आगे बढ़ सकते है. दुनिया इसी उम्मीद में बैठी है की 2020 ख़त्म होते ही इस कोरोना से सबका पिण्ड छूट जायेगा.
कभी कभी लगता है की हमने जो प्रकृति के साथ खिलवाङ किया है, प्रकृति उसी का बदला हमसे ले रही है वो भी गिन गिन के.
कुमार विश्वास की ये पंक्तियाँ बिलकुल सटीक बैठती है इस जगह-
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे आगे
तू देख के क्या रंग है तेरा मेरे आगे
शास्त्रों में लिखा है की ‘मनुष्य को उसके कर्मों का फल उसी जन्म में मिलता है’ बस भइया हम सब वही भोग रहें हैं.
1-हमारा और कोरोना का शुरूआती दौर
वैसे तो कोरोना का अर्थ लैटिन में ‘ताज’है लेकिन हरकतें बिल्कुल अनरूप है. चीन से फैला कोरोना वायरस अब पूरी दुनिया में अपनी हाज़री लगा चुका है. भारत में सबसे पहला केस केरल का था जहाँ वुहान यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहा छात्र केरल वापस आया था. और कोरोना पॉजिटिव पाया गया.जनवरी फरवरी में जो बोल रहे थे की हमे तो कोरोना हो ही नहीं सकता आज गुरु सब के सब कोरोना को दावत दे कर बैठे है. देश भर में कोरोना का कहर देखते हुए 11 मार्च को इसे महामारी घोषित कर दिया गया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों का हौसला तथा एकजुटता बनाये रखने के लिए थाली बजवाई और दिये जलवाये.उस दिन देखकर ऐसा लगा की अगली सरकार मोदी जी की ही आएगी.
13 मार्च को जहाँ दिल्ली सरकार द्वारा सार्वजानिक समारोह पर प्रतिबन्ध लगाने के बावजूद दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज मस्जिद में जनसभा का आयोजन हुआ जिसमे तब्लीगी जमात महजबी जमसमूह कोरोना वायरस के एक तीव्र प्रसारक घटना के रूप में सामने आया. इस घटना ने सियासी बहस छेड़ दी और आग में घी का काम किया राजनीतिक दलों लें.
वहीं दूसरी और 90 के दशक का दौर आ गया था जिसे दूरदर्शन ने वापस लौटाया था. रामायण से हमें ये समझ आया की राजा कुछ भी कर ले परन्तु वो प्रजा को पूरी तरह खुश नहीं कर सकता तो दूसरी ओर महाभारत से राजनीतीक चाल का पता चल रहा था. रामायण ने हमारे दूरदर्शन को पुनर्जीवित कर दिया था और TRP (Television rating point) की श्रेणी में no 1 पर ला दिया था.
22 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने जनता कर्फू का ऐलान किया फिर शुरुआत हुई lockdown की.
23 मार्च से 14 अप्रैल का समय ज्यादातर लोगों का टीवी के आगे, सो कर, खाना बना कर ये साबित कर दिया की जब तक देश खुलेगा आधा देश हलवाई बन चूका होगा. वहीं हम महिलाओं के साड़ी और बिन्दीं challange को कैसे भूल सकते हैं जिसने कई युवाओं को बांध के रखा था.
अब हमारे देश में जानवर भी सड़क पर उतर आये क्योंकि इंसान घर के अंदर है.इस बीमारी ने एक संकुचित दायरा बना दिया जिसमें हम रह रहें हैं.
2- जब मिले एक के बाद एक झटके
हमारे प्रधानमंत्री जी ने कहा था की इस lockdown में आप जहाँ है वहीँ रहेंगे लेकिन प्रकृति को ये मंज़ूर ही नहीं था. प्रकृति ने भी हमारे साथ तड़ी मार खेलना शुरू किया जिसमे हम प्रकृति की मार खा रहे थे. जहाँ एक ऒर cyclone ‘अफ्फान’तो दूसरी ऒर ‘निसर्ग’ ने कोई कसर नहीं छोड़ी. इससे बचे तो भूकंप और टिड्डियों ने बची कूची कसर पूरी कर दी.
इस महामारी ने 2020 को एक अलग पहचान दे दी है जिससे हमारे देश की अर्थव्यवस्था साँस नहीं ले पा रही है.
Lockdown की अवधी जैसे जैसे बढ़ती जा रही थी हमारे देश के मजदूरों की समस्या भी उसी रफ़्तार से बढ़ रही थी और शुरू हुआ पलायन. मजदूरों के पलायन ने 1947 के बटवारे की याद दिला दी की कैसे लोग एक जगह से दूसरी जगह गए. इस पलायन ने व्यवस्था पर बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह उठा दिया था की जिसने हमारी सड़के बनाई, घर बनाये और विकास की प्रगति में साथ आज वही अकेले है. पलायन के दौरान कई तस्वीरें और वीडियोस सामने आये जिन्होंने कलेजा चीर दिया. हर आदमी बस यही मन ही मन सोच रहा था की-
‘देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान’
और ऐसे में सोनू सूद किसी भगवान बनकर मजदूरों की ज़िंदगी में आये. फ़िल्मी जगत के villan असल ज़िंदगी में मजदूरों के रियल हीरो थे जिन्होंने शक्तिमान की तरह फसें लोगों को उनके घर पहुँचाया. सोनू सूद को देखकर जनता ये कहने लगी की जब सोनू सूद कर सकते है,तो सरकार क्यों नहीं?
हर जगह जनता का प्यार इतना बढ़ गया था की भारत रत्न के लिए लोग मांग करने लगे, आखिर हो भी क्यों न जरूरत के समय जो साथ देता है वो किसी भगवान से कम भी तो नहीं होता है.
3-जब जुदा हुये हमसे हमारे अपने
शहर आबाद करके शहर के लोग,
अपने अंदर बिखरते जाते हैं….
जॉन एलिया की इन लाइन्स से हम किसी हद्द तक अपने को जोड़ सकते है आज का समय चुनौतियों से पूरा भरा पड़ा है सब समझ के परे है, की आगे अब और क्या होना है. एक के बाद एक धड़ाधड़ खबरें आ रहीं है जो अंदर से झकझोर दे रही है.
पड़ोसी देश की दग़ाबाजी से हमने लद्दाख में अपने कई वीर सपूतों को खो दिया वहीं फ़िल्मी जगत के दिग्गज सितारे ‘SIR’ यानि सुशांत ,इरफ़ान और ऋषि कपूर जैसे सितारों को हमसे दूर कर दिया.
ये समय ज़रूर हमें कमज़ोर और असहाय फील करा रहा है लेकिन इन्ही विचारों के साथ हमे लड़ना है उन्हें अपने ऊपर हावी नहीं होने देना है.सुशांत का यूं चले जाना लोगों को बहुत रुला रहा.स्वीकार नहीं हो रहा है की वो अब हमारे बीच नहीं है.
इन 6 महीनों में हमने इतना सब कुछ देख लिया है की,आगे का डर खतम हो गया है. कहते है न जब इतना झेल लिया तो 6 महीने गुरु और झेल लेंगे.
आगे के 6 महीनो को भारत की जनता new syllabus के रूप में स्वीकार कर चुकी है. बस इसी उम्मीद से छाती चौड़ी कर ली हैं की 2021 को पूरी रंगबाज़ी के साथ जियेंगे.जहाँ चाट पकौड़ी के साथ गोलपप्पे भी होंगे,जनरल के डब्बे में फिर से भीड़ होगी, india gate जायेंगे हम फिर से पहले की तरह जी पायेंगे.