इसलिए गणेश भगवान् को करनी पड़ी थी शादी
वेद पुराण के मुताबिक गणपति के विवाह में काफी दिक्कतें आ रही थी. उनसे विवाह करने के लिए कोई भी योग्य और सुशील वधू उन्हें नहीं मिल रही थी. इसके पीछे दो कारणों का जिक्र है. पहला कारण कि उनका चेहरा एक हाथी के समान था और दूसरा उनका एक दांत टूटा हुआ था. गणपति के दांत टूटने के पीछे की कहानी यह है कि इस दौरान गणपति और परशुराम के बीच में युद्ध छिड़ गया और इसी दौरान परशुराम का परशु (उनका शस्त्र) जाकर गणेश के दांत से टकरा गया और गणपति का दांत बीच से ही टूट गया. इसके बाद से गणपति को एक दंत के नाम से भी जाना जाने लगा.
स्वर्ग लोक में किसी का विवाह नहीं होने देते गणपति
काफी लंबे समय तक प्रतीक्षा करने के बाद भी जब गणपति का विवाह नहीं हो पा रहा था तब वह काफी परेशान रहने लगे. स्वर्ग लोक में जब कभी किसी देवी देवता का विवाह हो तो वह विवाह में जाने से भी कतराते थे. एक समय तो ऐसा आ गया जब उन्होंने ठान लिया कि जब तक मेरा विवाह नहीं होता तब तक मैं किसी का भी विवाह नहीं होने दूंगा और अपनी सवारी मूषक से मिलकर उन्होंने एक रणनीति तैयार की. जब कभी भी किसी की शादी होती थी तो उनका मूषक उन्हें आकर उसकी जानकारी देता था और फिर उसकी की मदद से वह विवाह के मंडप का नाश करवा देते थे. इस कारण से स्वर्ग लोक में किसी भी देवी देवता की शादी नहीं हो पा रही थी.
यह जब काफी लंबे समय तक नहीं रुका तो सभी देवी देवता परेशान होकर भगवान शंकर के पास पहुंचे. लेकिन उनके पास भी इससे निपटने के लिए कोई योजना नहीं थी. इसके बाद भगवान शंकर सारे देवी देवताओं के साथ ब्रह्मा के पास गएं. ब्रह्मा जी ने देवी देवताओं की इस परेशानी को सुना और योग के द्वारा दो कन्याओं को प्रकट किया जिनका नाम था रिद्धि और सिद्धि. यह दोनों ब्रह्मा जी की मानस पुत्री थी. दोनों पुत्रियों को लेकर ब्रह्मा गणेश जी के सामने प्रकट हुए और उनसे निवेदन किया कि वह उनकी पुत्रियों को शिक्षा दें. इसके लिए गणेश जी तैयार हो गए. इसके बाद जब कभी भी गणेश जी का चूहा उनके पास किसी के विवाह होने की जानकारी लेकर आता था. तो रिद्धि-सिद्धि गणपति का ध्यान भटका देती थी. लेकिन यह ज्यादा समय तक नहीं चला. आखिरकार वो दिन आ गया जब गणेश जी को ब्रह्म देव की चाल के बारे में पता चल गया. इसके बाद गणपति काफी क्रोधित हुए और रिद्धि-सिद्धि को लेकर ब्रह्मदेव के सामने प्रकट हुए. गणपति ने ब्रह्मदेव से कहा कि अब वह उनकी पुत्रियों को शिक्षा नहीं दे सकते हैं.
गणेश जी की बातों को सुनकर ब्रम्हदेव मन ही मन मुस्कुराए और उन से निवेदन किया कि आप ही ने जब इन्हें शिक्षा दिया है तो क्यों ना आप ही इन दोनों से विवाह कर लें. इस बात को सुनकर गणपति भी राजी हो गए और बेहद ही धूमधाम से उनका विवाह हुआ विवाह के उपरांत उन्हें दो पुत्रों की भी प्राप्ति हुई जिनका नाम शुभ और लाभ है.